देवीदयाल आमआदमी पार्टी के गोकुलपुरी से पूर्व प्रत्याशी थे उनका कहना है- मैं
एक समस्या
बताना चाहता
हूं।' फोन
पर देवीदयाल
ने आम
आदमी पार्टी
के सम्बन्ध
जो बात
बताई वह
दरअसल केवल
देवीदयाल जैसे
किसी एक
विधायक प्रत्याशी
की समस्या
नहीं है,
बल्कि आम
आदमी पार्टी
का वह
स्याह सच
है, जिस
पर नजर
डालने की
जरूरत है।
देवीदयाल कहते
हैं, 'पिछली
बार मैं
गोकुलपुरी से
आम आदमी
पार्टी के
लिए विधानसभा
का प्रत्याशी
था। इस
बार आम
आदमी पार्टी
ने मुझे
टिकट नही
दिया है।
लेकिन जिनको
टिकट दिया
है, उनके
ऊपर जमीन
हड़पने और
अवैध ढंग
से सम्पति
कारोबार करने
का गंभीर
आरोप है।
इस चुनाव
में गोकुलपूरी
विधानसभा सीट
पर आम
आदमी पार्टी
ने कुछ
ही दिन
पहले पार्टी
में शामिल
हुए एक
पूर्व भाजपा
नेता चौधरी
फतेह सिंह
को टिकट
दिया है।
फतेह सिंह
के ऊपर
3000 वर्ग गज
जमीन अवैध
ढंग से
हथियाने का
आरोप है,
जिसका पूरा
दस्तावेज भी
मेरे पास
मौजूद है।
इसके अलावा
चौधरी फतेह
ने जो
चुनाव लड़ने
के दौरान
जो हलफनामा
चुनाव आयोग
को दिया
है, उसमे
करोड़ांे रुपये
की एक
जमीन दिखायी
गयी है
लेकिन इस
हलफनामे में
उसका क्या
हुआ, कुछ
भी जिक्र
नहीं है।
ये सारे
मामले दस्तावेजों
के साथ
मैंने आम
आदमी पार्टी
के समक्ष
रखे, मगर
उसने इन
दस्तावेजों को
देखने और
उस आधार
पर कार्यवाही
करते हुए
इनका टिकट
रद्द करने
की बजाय
मुझे यह
कह दिया
कि इस
सीट पर
चौधरी फतेह
सिंह की
अपेक्षा आप
कमजोर उम्मीदवार
हैं। केजरीवाल
के कहने
पर मैं
ये मामला
पार्टी के
आंतरिक लोकपाल
के समक्ष
भी ले
गया, मगर
लोकपाल पीठ
भी केजरीवाल
के आगे
लाचार ही
नजर आई।'
दरअसल देवीदयाल
जो बताना
चाह रहे
हैं उसके
आधार पर
महज किसी
एक सीट
अथवा एक
प्रत्याशी के
लिहाज से
निष्कर्ष निकालने
की बजाय
इसको विस्तृत
परिप्रेक्ष्य में
'डीकोड' किये
जाने की
जरूरत है।
आम आदमी पार्टी
एक अलग
किस्म की
पार्टी होने
का दावा
करती रही
है, लेकिन
सत्ता-लोलुपता
कहें या
केजरीवाल की
अति-महत्वाकांक्षा,
यह राजनीतिक
दल महज
एक साल
में ही
नैतिक भ्रष्टाचार
की हर
सीमा को
लांघता नजर
आ रहा
है। देवीदयाल
जब चौधरी
फतेह से
जुड़े इस
मामले को
लेकर केजरीवाल
के पास
गए तो
केजरीवाल ने
इनको कहा
कि आप
एक बार
अपने सारे
दस्तावेज हमारे
आंतरिक लोकपाल
के पास
ले जाइए।
देवीदयाल के
अनुसार आम
आदमी पार्टी
के आंतरिक
लोकपाल में
तीन सदस्य
है, प्रो़
आनंद कुमार,
आशीष खेतान
एवं प्रशांत
भूषण। लेकिन
इन्होंने देवीदयाल
के सामने
परोक्ष तौर
पर लाचारी
व्यक्त कर
दी। यानी,
खुद के
लोकपाल से
खुद की
जांच करवाकर
खुद को
ही बरी
कर देने
का यह
अद्भुत व अनोखा पाखंड
रचने के
मामले में
आम आदमी
पार्टी देश
की इकलौती
पार्टी है।
और यही
इनकी ईमानदारी
का तथाकथित
मापदंड भी
है! सैद्धांतिक
पारदर्शिता के
नाम पर
पाखंड करने
का एक
और मसला
है जहां
इस पार्टी
ने न सिर्फ 'यू-टर्न' लिया
है, बल्कि
न जाने
कितने आम
लोगों को
बेवकूफ बनाया
है। पिछले
विधानसभा चुनावों
बाद पार्टी
का दावा
था कि
वह समान
मानदंड के
आधार पर
ही जनता
की राय
से टिकट
बंटवारा करेगी,
न कि
आलाकमान ये
तय करेगा।
इसके लिए
बाकायदा हर वार्ड से हस्ताक्षर का प्रावधान सार्वजनिक किया गया था।
अपने इस सैद्धांतिक आदर्श से 'यू-टर्न' लेते हुए पार्टी ने मनमाने टिकट बांट दिए। चौधरी फतेह सिंह बनाम देवीदयाल मसले को भी इसी नजर देखा जा सकता है। अब यहां भी आलाकमान ही ये तय करने लगा है कि विगत 16 तारीख को पार्टी में शामिल हुआ कोई जिताऊ उम्मीदवार चौधरी फतेह सिंह 17 तारीख को उम्मीदवार घोषित होगा या सालों से मेहनत कर रहा कोई देवीदयाल उम्मीदवार होगा? कम से कम ऐसे उदाहरण सामने आने के बाद आम आदमी पार्टी को भाजपा अथवा किसी अन्य दल पर पैराशूट नेता उतारने का आरोप नहीं लगाना चाहिए।
अपने इस सैद्धांतिक आदर्श से 'यू-टर्न' लेते हुए पार्टी ने मनमाने टिकट बांट दिए। चौधरी फतेह सिंह बनाम देवीदयाल मसले को भी इसी नजर देखा जा सकता है। अब यहां भी आलाकमान ही ये तय करने लगा है कि विगत 16 तारीख को पार्टी में शामिल हुआ कोई जिताऊ उम्मीदवार चौधरी फतेह सिंह 17 तारीख को उम्मीदवार घोषित होगा या सालों से मेहनत कर रहा कोई देवीदयाल उम्मीदवार होगा? कम से कम ऐसे उदाहरण सामने आने के बाद आम आदमी पार्टी को भाजपा अथवा किसी अन्य दल पर पैराशूट नेता उतारने का आरोप नहीं लगाना चाहिए।
साथ ही खुद के अलग किस्म के राजनीतिक दल होने का दावा भी नहीं करना चाहिए। आम आदमी पार्टी के आंतरिक लोकपाल के सदस्यों में जिन तीन लोगों का नाम देवीदयाल ने लिया है, उनमे एक हैं पूर्व पत्रकार आशीष खेतान। खेतान भी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ईमानदारी का प्रमाण-पत्र लिए थे और आम आदमी पार्टी से ईमानदार होने का प्रमाण-पत्र मिलते ही लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली से टिकट भी हासिल कर लिया। इसके पहले आशीष खेतान गुलेल़कम नाम से एक वेबपोर्टल चलाते थे।
उस वेबपोर्टल में काम कर चुके व धोखा खा चुके एक पत्रकार चंदन कुमार ने खेतान व गुलेल को लेकर लिखित तौर पर स्वीकार किया है कि 'आशीष खेतान तहलका की तर्ज पर एक वेबसाइट गुलेल शुरू करने जा रहे थे। तब मैं नई दुनिया, ग्वालियर में काम कर रहा था। एक मित्र के कहने पर मंै आशीष खेतान से मिला। मेरी रुचि का क्षेत्र होने के कारण मैंने नई दुनिया छोड़कर गुलेल से जुड़ने का फैसला किया। पहली मुलाकात में खेतान मुझे थोड़े बेचैन और कुछ जल्दबाजी में दिखे। चूंकि खेतान की सभी रपटें सांप्रदायिकता या भाजपा के खिलाफ ही रही थीं, तो यह समझते देर नहीं लगी कि कांग्रेस की तरफ इनका झुकाव है।
एक-दो महीने ही हुए मेरी नौकरी के कि एक महत्वपूर्ण बैठक हुई और इसमें कहा गया कि अब हमारे पास पैसा नहीं है। लिहाजा 'कॉस्ट कटिंग' के नाम पर कुछ ऐसे फैसले लिए गए, जिससे साफ हो गया कि गुलेल शुरू करने के पीछे की मंशा क्या थी! खेतान ने अपने सभी पत्रकारों को सिर्फ एक मिशन में लगा दिया। कुछ ने अपनी आपत्ति जताई कि पहले तो ऐसा नहीं कहा गया था। तो तर्क दिया गया कि हमारे पास पैसे की कमी है और अगर हम 'यह' काम करते हैं, तो हमारे पास पैसा फिर से आ जाएगा। पैसा कहां से आएगा यहा नहीं बताया गया। लेकिन, यही खेतान शुरू में कहा करते थे कि हमने गुलेल में न किसी नेता, व्यवसायी का और न ही किसी कोल ब्लॉक माफिया का पैसा लगाया। अब पैसा कहां से आ रहा है, इसे लेकर तेवर बदलने लगे थे। चूंकि पैसे का स्रोत बदला तो खेतान का तरीका भी बदल गया।
अब हमें एवं सभी पत्रकारों, कर्मचारियों को चेक की बजाय नकद में वेतन दिया जाने लगा। अब यहां सवाल उठता है कि किसके पैसे से उन्होंने लाखों रुपए निवेश करना शुरू किया? कहां से आया पैसा? जो चंद महीने पहले वे चेक से कर्मचारियों को पैसा देते थे, दो महीने बाद नकद में पैसे देने क्यों शुरू किये? क्या वे नकद वेतन काला धन था? किसका पैसा था वह? काम के दौरान ऐसी भी घटनाएं सामने आईं जिसने साबित किया कि आशीष खेतान अपने साथ काम कर रहे पत्रकारों की फोन टैपिंग व जासूसी करवाया करते थे।'
चन्दन साफ तौर पर यह स्वीकारते हैं कि उन दिनों जब मीटिंग होती थी तो खेतान का मूड एंटी-भाजपा रहता था। वजह जो भी रही हो लेकिन वे कांग्रेस के प्रति उदार रहते थे। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल की स्वराज की अवधारणा को ही उन्होंने कई बार बातचीत में खारिज किया था। उस दौरान वे कहा करते थे कि केजरीवाल द्वारा शीला दीक्षित के खिलाफ लगाये गये आरोप ही गलत हैं। अब सवाल ये है कि आखिर खेतान जैसे अवसरवादी व पक्षपाती व्यक्ति की निष्ठा पर संदेह क्यों न किया जाय? सवाल ये भी है कि आम आदमी पार्टी के नेता व आंतरिक लोकपाल टीम के सदस्य आशीष खेतान गुलेल के दिनों में किसके हितांे की खातिर काम कर रहे थे? कहीं ऐसा तो नहीं किसी के इशारे पर भाजपा व राष्ट्रवादी संगठनों को बदनाम करने का छुपा एजेंडा आशीष खेतान ने पत्रकार रहते हुए चलाया व आज आम आदमी बने फिर रहे हैं? यानी देवीदयाल की शिकायत की जांच अगर आशीष खेतान जैसा व्यक्ति करेगा, जो खुद पैसे को काला-सफेद करने का कारोबार चलाने को लेकर संदिग्ध हो, तो फिर उस जांच का परिणाम तो यही आएगा न कि करोड़पति चौधरी फतेह सिंह उम्मीदवार बनेंगे और देवीदयाल का टिकट कटेगा!
उस वेबपोर्टल में काम कर चुके व धोखा खा चुके एक पत्रकार चंदन कुमार ने खेतान व गुलेल को लेकर लिखित तौर पर स्वीकार किया है कि 'आशीष खेतान तहलका की तर्ज पर एक वेबसाइट गुलेल शुरू करने जा रहे थे। तब मैं नई दुनिया, ग्वालियर में काम कर रहा था। एक मित्र के कहने पर मंै आशीष खेतान से मिला। मेरी रुचि का क्षेत्र होने के कारण मैंने नई दुनिया छोड़कर गुलेल से जुड़ने का फैसला किया। पहली मुलाकात में खेतान मुझे थोड़े बेचैन और कुछ जल्दबाजी में दिखे। चूंकि खेतान की सभी रपटें सांप्रदायिकता या भाजपा के खिलाफ ही रही थीं, तो यह समझते देर नहीं लगी कि कांग्रेस की तरफ इनका झुकाव है।
एक-दो महीने ही हुए मेरी नौकरी के कि एक महत्वपूर्ण बैठक हुई और इसमें कहा गया कि अब हमारे पास पैसा नहीं है। लिहाजा 'कॉस्ट कटिंग' के नाम पर कुछ ऐसे फैसले लिए गए, जिससे साफ हो गया कि गुलेल शुरू करने के पीछे की मंशा क्या थी! खेतान ने अपने सभी पत्रकारों को सिर्फ एक मिशन में लगा दिया। कुछ ने अपनी आपत्ति जताई कि पहले तो ऐसा नहीं कहा गया था। तो तर्क दिया गया कि हमारे पास पैसे की कमी है और अगर हम 'यह' काम करते हैं, तो हमारे पास पैसा फिर से आ जाएगा। पैसा कहां से आएगा यहा नहीं बताया गया। लेकिन, यही खेतान शुरू में कहा करते थे कि हमने गुलेल में न किसी नेता, व्यवसायी का और न ही किसी कोल ब्लॉक माफिया का पैसा लगाया। अब पैसा कहां से आ रहा है, इसे लेकर तेवर बदलने लगे थे। चूंकि पैसे का स्रोत बदला तो खेतान का तरीका भी बदल गया।
अब हमें एवं सभी पत्रकारों, कर्मचारियों को चेक की बजाय नकद में वेतन दिया जाने लगा। अब यहां सवाल उठता है कि किसके पैसे से उन्होंने लाखों रुपए निवेश करना शुरू किया? कहां से आया पैसा? जो चंद महीने पहले वे चेक से कर्मचारियों को पैसा देते थे, दो महीने बाद नकद में पैसे देने क्यों शुरू किये? क्या वे नकद वेतन काला धन था? किसका पैसा था वह? काम के दौरान ऐसी भी घटनाएं सामने आईं जिसने साबित किया कि आशीष खेतान अपने साथ काम कर रहे पत्रकारों की फोन टैपिंग व जासूसी करवाया करते थे।'
चन्दन साफ तौर पर यह स्वीकारते हैं कि उन दिनों जब मीटिंग होती थी तो खेतान का मूड एंटी-भाजपा रहता था। वजह जो भी रही हो लेकिन वे कांग्रेस के प्रति उदार रहते थे। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल की स्वराज की अवधारणा को ही उन्होंने कई बार बातचीत में खारिज किया था। उस दौरान वे कहा करते थे कि केजरीवाल द्वारा शीला दीक्षित के खिलाफ लगाये गये आरोप ही गलत हैं। अब सवाल ये है कि आखिर खेतान जैसे अवसरवादी व पक्षपाती व्यक्ति की निष्ठा पर संदेह क्यों न किया जाय? सवाल ये भी है कि आम आदमी पार्टी के नेता व आंतरिक लोकपाल टीम के सदस्य आशीष खेतान गुलेल के दिनों में किसके हितांे की खातिर काम कर रहे थे? कहीं ऐसा तो नहीं किसी के इशारे पर भाजपा व राष्ट्रवादी संगठनों को बदनाम करने का छुपा एजेंडा आशीष खेतान ने पत्रकार रहते हुए चलाया व आज आम आदमी बने फिर रहे हैं? यानी देवीदयाल की शिकायत की जांच अगर आशीष खेतान जैसा व्यक्ति करेगा, जो खुद पैसे को काला-सफेद करने का कारोबार चलाने को लेकर संदिग्ध हो, तो फिर उस जांच का परिणाम तो यही आएगा न कि करोड़पति चौधरी फतेह सिंह उम्मीदवार बनेंगे और देवीदयाल का टिकट कटेगा!
दरअसल चंदे का धंधा और धंधे से चंदा उगाहने का काम कर रही आम आदमी पार्टी में अब आम आदमी गिनती के भी नहीं बचे हैं। आम आदमी के लिए बनाये गये सारे मापदंड पार्टी ने खत्म कर दिये हैं। अब न मोहल्ला सभा अपना उम्मीदवार तय करती है और न ही अब कम खर्चे में चुनाव लड़ने की ही कोई कोशिश है। देवीदयाल का टिकट काट कर जिस फतेह सिंह को टिकट दिया गया है वह आधिकारिक तौर पर 7़ 4 करोड़ का मालिक है, जबकि देवीदयाल का दावा है कि अगर ढंग से जांच हो तो यह आंकड़ा और ज्यादा हो सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि आम आदमी पार्टी राजनीति के राह पर जिस ढंग से अपने चरित्र में गिरगिटिया परिवर्तन लाई है, उससे साफ है कि भ्रष्ट राजनीति की राह पर इस दल की रफ्तार सबसे तेज है। आशीष खेतान, चौधरी फतेह, मुज्जफर बट्ट जैसे उम्मीदवार आम आदमी पार्टी ने महज एक साल में अर्जित किये हैं। अभी तो ये महज एक साल के पाप हैं, इन्हें अवसर तो दीजिये फिर देखिये कि आम आदमी की वेश-भूषा में घूम रहे ये पहुंचे हुए खास आदमी क्या गुल खिलाते हैं?
'आप' के लिए 'दाग' अच्छे हैं!
'आप' के लिए 'दाग' अच्छे हैं!
फांसी की सजा पा चुके आतंकी अफजल और अजमल कसाब की फांसी का विरोध करने वाले मुजफ्फर बट्ट और बाबू मैथ्यू को श्रीनगर और बंगलूरू से लोकसभा चुनाव का टिकट देने एवं बटला हाऊस मुठभेड़ को फर्जी बताने वाले अमानतुल्ला खान को विधायक का टिकट देने का अनोखा कारनामा इसी आम आदमी पार्टी ने किया है। क्या यही इसकी स्वच्छ राजनीति का लक्षण है? ऐसे कई मामले हैं जहां आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल झूठ की बुनियाद पर राजनीति करते नजर आते हैं। मसलन, देखा जाय तो इन्हांेने नितिन गडकरी के खिलाफ जमीन हड़पने का आरोप लगाया जबकि मीडिया द्वारा स्थानीय पड़ताल में मामला कुछ और ही सामने आया। गडकरी के खिलाफ तो अदालत में केजरीवाल कोई सबूत नहीं दे पाए, ये दुनिया जान चुकी है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि गडकरी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी की नेता अंजली दमनिया पर ही जमीन कब्जाने का मुकदमा चल रहा है।
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